500 & 1000 Note Ban Poem – नोटबंदी कविता

जब से नोट बंदी हो गयी है
सियासत और भी गन्दी हो गयी हैं |

सुना है कश्मीर भी सांसे ले रहा है
पत्थरो की आवाजे मंदी हो गयी हैं |

जो चिल्ला के हिसाब मांगते थे सरकार से
वही लोग रो रहे है जब पाबन्दी हो गयी हैं |

आपस में झगड़ते थे दुश्मनो की तरह
उन नेताओ में आजकल रजामंदी हो गयी हैं |

वतन के बदलने का अहसास है मुझको
पर आज एक शख्स को हराने के लिए सियासत अंधी हो गयी हैं |